Narayan Nagabali Poojan

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Narayan Nagbali Poojan involves two different rituals. Narayan Bali is said to empower a person to get rid of his ancestral curse, also called Pitru Dosha, while Nag Bali is a way to get rid of sin by killing a snake (a cobra made of wheat dough). Performing Narayan Bali Pooja can satisfy the unfulfilled worldly desires of the departed souls that may disturb the descendants or relatives.

Narayan Bali Poojan is similar to a funeral where artificial wheat flour is used. Mantras are used to address souls who have desires in this world. With the help of rituals, they get possession of a body made of wheat flour, and the burial releases them to the other world. Similarly, Nag Bali allows the deceased to be freed from his sins.Performing Narayan Nagbali Pooja can remove problems of Bhoot Pishaach Badha, failure in business, health problems or lack of peace in family, obstacles in marriage etc.

The ritual consists of two important parts, the so-called Narayan Bali’ and Nag Bali which are performed on the first and second day. The third day is reserved for rituals called Ganesh Pujan, Punya Wachan and Nag Pujan. Chapter 40 of the Garuda Purana is dedicated to the rituals of Narayan Bali.

Narayan Bali is a necessary ritual performed to appease the soul of the deceased who died an unnatural death, while Nag Bali is to get rid of the sin of killing a snake, especially a cobra, which is worshiped throughout India..

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नारायण नागबलि यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो की त्र्यंबकेश्वर मंदिर क्षेत्र में मंदिर के पूर्व द्वार पर स्थित अहिल्या गोदावरी संगम और सती महा-स्मशान में की जाती है। एक प्राचीन हिंदू शास्त्र के अनुसार, धर्म सिंधु में उल्लेख किया है, कि नारायण नागबली पूजा का यह अनुष्ठान केवल त्र्यंबकेश्वर में किया जाता है।

नारायण बली पूजा को “मोक्ष नारायण बली” पूजा के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पूजा परिवार के सदस्यों द्वारा उनके पूर्वजो की इच्छाओं को पूरा करने के लिए की जाती है। मोक्ष का मतलब आत्मा की स्वतंत्रता, मोक्ष नारायण बली अनुष्ठान का अर्थ गरुड़ पुराण के ४० वें भाग में वर्णित है

नारायण बलि पुजा:

गरुड़ पुराण के अनुसार, यह पूजा तब की जाती है जब कोई व्यक्ति की असामान्य मृत्यु जैसे बीमारी से मौत, आत्महत्या, जानवरों द्वारा, शाप द्वारा, सांप के काटने से मौत, आदी से होती हैं।

नारायण नागबली पूजा की विधी अंतिम संस्कार में की जाने वाली विधी से सामान है। पूजा के समय जपे गए सभी मंत्र पूर्वजो के आत्माओं की असंतुष्ट इच्छाओं को आमंत्रित करते हैं। क्योंकी यह कहा जाता है कि अंतिम संस्कार आत्माओं को दूसरी दुनिया से मुक्त करता है।

 

नागबली पूजा:

जब कोई व्यक्ति गलती से सांप को मारता है तब उसे शाप मिलता है, जो की त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास अहिल्या गोदावरी मंदिर और सतीके महा-स्मशान की जगह नागबलि पूजा करने से ख़त्म होता है।

पितृदोष के लक्षण:

  • स्वप्न में नाग दिखाई देना एवं नाग पीछे पड़ जाना।
  • परिवार में आपसी झगड़े होना।
  • संतानसुख का लाभ न होना अन्यथा गर्भपात होना।
  • व्यापार में नुकसान एवं पैसे की बर्बादी होती है।
  • पढ़ाई में मन एकाग्र ना होना।
  • परिवार में बार-बार स्वास्थ्य की समस्याएं उत्पन्न होना।
  • कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं।
  • नौकरी में उतार-चढाव तथा प्रमोशन न मिलना।
  • शादी-विवाह टूटना।
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नारायण नागबली अनुष्ठान कौन कर सकता है?

कोई भी व्यक्ति (किसी भी जाति का) यह अनुष्ठान कर सकता है।

पारिवारिक खुशीके लिए, कोई विधुर भी यह अनुष्ठान कर सकते है।

संतान प्राप्ति के हेतु, पति और पत्नी भी नारायण नागबली जैसे पूजाए कर सकते है।

गर्भवती महिला को (केवल ५ महीने के गर्भवस्था तक) यह पुजा करने की अनुमति है।

विवाह जैसे पवित्र कार्य के बाद, हिन्दू १ वर्ष तक यह अनुष्ठान नहीं करना चाहिए (अन्य किसी भी पवित्र कार्य के बाद यह अनुष्ठान किया जा सकता है)।

यदि माता- पिता में से कोई एक की मृत्यु हुई हो तो, १ वर्ष बाद नारायण नागबली अनुष्ठान त्र्यंबकेश्वर मंदिर परिसर याने मंदिर के पूर्व दरवाज़े के ओर स्थित अहिल्या गोदावरी संगम और सती महास्मशान यहा किया जाता हैं।

नारायण नागबलि पूजा कहाँ करनी चाहिए?

यह नारायण नागबली पूजा को कुल ३ दिन का समय आवश्यक है और इसके पहले दिन, भक्त को पवित्र कुशावर्त कुंड (कुशावर्त तालाब) में स्नान करना होता है उसके बाद “दशदान” यानी, दस चीजों को दान में देने का संकल्प करना होता है। भगवान शिव की साधना करने के बाद, सभी भक्तो को नारायण नागबली पूजा करने के लिए धर्मशाला जाना होता है। नारायण नागबली पूजा दो दिनों तक गोदावरी और अहिल्या नदी के संगम के स्थान पर सम्पन्न होती है।

सनातन धर्म में सभी पूजाए प्रथम संकल्प, न्यास और कलश पूजन से शुरू होती है। उसके बाद भगवान सूर्य, गणेश, और विष्णु का अनुष्ठान होता है। उसके बाद, पांच देवताओं, भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान महेश, यम, और तत्पुरुष की पूजा होती है।

फिर क्रमशः अग्नि स्थापना, पुरुषसूक्त हवन, एकादशी विष्णु श्राद्ध, पंचदेवता श्राद्ध बलीदान, पिंड दान, पराशर, और द्वादश कर्म किए जाते हैं। इस अनुष्ठान को करने के बाद, उपासक किसी को छू नहीं सकते यानि उन्हें एक दिन के लिए सूतक का पालन करना होता है।

ऐसे सारे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, यह नारायण नागबली पूजा अनुष्ठान स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ,पारिवारिक समस्याओ से छुटकारा, या किसी साँप / कोबरा द्वारा मार दिया या काट दिया गया तो यह अनुष्ठान करते है।

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नारायण नागबली पूजा के लाभ :

अच्छे स्वास्थ्य की तलाश के लिए.

पितृदोष से मुक्ति हेतु.

यह नारायण नाग बाली पूजा अनुष्ठान व्यक्ति की व्यवसाय और करियर संबंधी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करता है।

नारायण नागबली पूजा विशेष रूप से उन जोड़ों के लिए सुझाई जाती है जो संतान पैदा करने में जटिलताओं का सामना कर रहे हैं।

सांप के बुरे सपनों से छुटकारा पाने के लिए.

असामयिक मृत्यु को प्राप्त मृत पूर्वज की आत्मा द्वारा उत्पन्न समस्याओं का निवारण।

जो लोग इन नागबलि अनुष्ठानों को करते हैं वे सांप या नाग को मारने के पाप से मुक्त हो जाते हैं।